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बचपन का प्रसाद

बचपन की बात है। मै जब हाथीपोल में रहता था। तो वहाँ पर मुझे मुफ्त में प्रसाद खाने का बहुत मौका मिलता था।  मेरे घर के पास 3 मंदिर थे। एक गणेश जी का, दूसरा शिवजी का औऱ तीसरा गुलाबेश्वर बावजी का।  तीन मंदिर और तीन अलग-अलग दिन। सोमवार को शिव मंदिर का नंबर था। बुधवार को पंचमुखी गणेश जी और रविवार को गुलाबेश्वर बावजी का। इन तीनो दिन लोगो की भीड़ जमा होती थी। और मै भी मंदिर के बाहर ही खड़ा रहता था। दर्शन के नही भाई प्रसाद के इन्तजार में। मुझे पता था हर मंदिर में एक आदमी ऐसा आता ही था जो प्रसाद चढाता ही था। और उनके आने का टाइम भी फिक्स था। सोमवार को चढ़ाये प्रसाद में केला मिलता था। बुधवार को लडडू और एक फल मिलता था । और रविवार को  मिठाई मिलती थी और वो भी गरमा गरम इमरती। साथ मे नारियल चटक। सोमवार और रविवार को तो प्रसाद मिलने में ज्यादा टाइम ना लगता लेकिन बुधवार को बडा कष्ट होता क्योंकि बुधवार वाला भक्त चढाता तो खाली एक लडडू और फल था। लेकिन पूजा और मन्त्र में एक घंटे का समय लगाता। और उस एक घंटे के  इन्तजार में दो चार और प्रसाद के मेरे जैसे भूखे इकटठे हो जाते। और मुह ताकते की कब वो जाए और हम प्रसाद पर