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Lunch Box

स्कूल में सभी बच्चों को लंच ब्रेक का इन्तजार रहता है। हमें भी हमारे स्कूल के दिनों में लंच बॉक्स का इन्तजार रहता था। एक तो वो पाँच पीरियड बाद आता था और एक, टिफ़िन में क्या होगा वो देखने का। पाँचवा पीरियड आते आते तो पेट मे चूहे फुटबॉल खेलना शुरू कर देते थे यही इन्तजार होता कब घण्टी बजेगी कब टिफ़िन खुलेगा।
हमारे स्कूल में लंच क्लासरूम में ही करते थे। क्लास में लंच का भी एक व्यवस्था होती थी। लंच की घंटी बजती थी। फिर क्लास टीचर क्लास में आते थे। पहले बेंच साफ करके सब अपने-अपने नेपकिन बिछाते फिर उस पर टिफ़िन रखते। फिर सब एक साथ हाथ जोड़कर आँखे बंद करके मंत्र बोलते थे।

ॐ सहनाववतुसह नौ भुनक्तुसह वीर्यं करवाव हैतेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषाव है
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

ओम शांति बोलते बोलते ही टिफ़िन खुल जाता था लेकिन हमारे टीचर कहा हमको खाने दे। पहले टीचर चेक करते कि बच्चे क्या लेकर आये है कोई फ़ास्ट फ़ूड, अचार पराठे तो नही लाया शनिवार के दिन के अलावा और किसी दिन कोई फ़ास्ट फ़ूड टाइप खाना allow नही था। रोटी सब्ज़ी होने चाहिए और ओनली शाकाहारी। और हरी सब्जी हो तो टीचर तारीफ भी करती। कुछ और लाये हो तो डायरी में नोट डाला जाता था। फिर पेरेंट्स से sign और करवाओ। वैसे बड़ी कक्षा में आते आते तो पेरेंट्स के सिग्नेचर करना खुद सिख गए थे। खुद ही कर लो। पेरेंट्स को बताने का नो टेंशन।
शनिवार को आप ब्रेड सैंडविच, पोहा, नमकीन, अचार पराठा ला सकते थे।
क्लास टीचर लंच टिफ़िन कभी कभी randomly दोनो टाइम चेक करते थे खाना खाने के पहले और लंच खत्म होने के बाद। की पूरा खाया है कि नहीं। पूरा नही खाया हो तो खड़ी होकर जबरदस्ती खत्म करवाती ये सब्ज़ी क्यो छोड़ दी वगेरह। 
कभी कोई सब्ज़ी पसंद नही होती तो वो भी खानी पड़ती थी। क्योकि टीचर चेक करेंगे।
इसी बहाने से सारी सब्ज़िया खाना सीख गए थे कि ये नही खाते वो नही खाते। सब सब्ज़िया पसंद। 
एक दो सब्ज़ी तो बिल्कुल पसंद नही थी तो कोरा पराठा खाओ या फिर इधर उधर दोस्तो से लेकर काम चलाना पड़ता। और फिर खुद की सब्ज़ी इधर उधर करनी पड़ती थी ताकि टीचर को पता नही चले। या फिर सब्ज़ी का बॉक्स गायब करके बहाना मारो की मम्मी जल्दबाज़ी में सब्जी रखना भूल गयी।

शनिवार को क्लास में ही सामूहिक भोजन की व्यवस्था होती थी। मतलब सब अपने-अपने दोस्तों के साथ बैठकर, बेंचे आपस मे जोड़कर बड़ी टेबल बनाकर साथ मे लंच कर सकते थे।
शनिवार का दिन तो स्पेशल होता था क्योंकि सब स्पेशल डिश लेके आते थे कोई पोहा, तो कोई सैंडविच, कोई पूड़ी सब्ज़ी, कोई आलू पराठा या कुछ और। 
लेकिन मेरे टिफ़िन में तो अधिकतर सब्ज़ी रोटी ही होती थी। हालांकि वो भी मस्त होती पर कभी दूसरा कुछ खाने की इच्छा होती। शनिवार को सब स्पेशल टिफ़िन लाते थे और सबके टिफ़िन से थोड़ा थोड़ा चखना तो पड़ेगा ही तो मेरा टिफ़िन भी स्पेशल होना चाहिए ताकि दूसरे भी मेरे टिफ़िन पर टूट पड़े। तो फिर इसके लिए कुछ चालाकियां करनी पड़ती। 
मै साईकल चलाकर स्कूल जाता था। तो कभी-कभी साईकल शनिवार को चेतक सर्किल की और से ले लेता था क्योंकि चेतक सर्किल पर बहुत अच्छे पोहे मिलते थे शानदार काले चने, नीबू, नमकीन, चटपटा मसाला डालकर बने हुए। तो फिर मैं मेरा टिफ़िन का खाना किसी गाय को डाल देता और फिर चेतक सर्किल से 5 रुपए के चटपटे पोहे से टिफ़िन भरवा देता। चटपटे मसालेदार पोहे खाकर सबको मजा आ जाता।

एक अविस्मरणीय किस्सा याद आ रहा है। मै जब छोटा था तो मै अपने पेरेंट्स के साथ रहता था और मेरा बड़ा भाई मेरे नानाजी के यहा रहता था। तो हम लंच के बाद के recess ब्रेक में खाने के कवै का आदान-प्रदान करते थे। एक वो अपने टिफ़िन का एक कव्वा जेब मे छिपाकर लेकर आता और एक मै अपने टिफीन का कव्वा छुपाकर लेकर जाता। और फिर एक दूसरे का खाना चखा जाता था। वो भी क्या दिन थे।
वो पुराने दिन
वो सुहाने दिन





 



 



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